Friday 1 June 2007

गूजरों का विरोध

राजस्थान में अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर गूजरों के बंद के दौरान सवाई माधोपुर ज़िले में पुलिस के साथ झड़प में चार लोगों की मौत हो गई है और कई स्थानों पर तोड़फोड़ की घटना हुई है.
गूजर समुदाय ने आज राज्य के पाँच प्रमुख शहरों और कई क़स्बों में बंद का आह्वान किया था जिस दौरान सवाई माधोपुर ज़िले के बोली गांव में हिंसा हुई.
पुलिस ने तीन मौतों की पुष्टि कर दी है. इससे पहले दौसा में मंगलवार को गूजर समुदाय और पुलिस के बीच संघर्ष के बाद फायरिंग में 14 लोगों की मौत हो गई थी.
आज बंद के दौरान कई जगह पुलिस थाने और सरकारी कार्यालय जला दिए गए हैं. जयपुर-अजमेर रोड में प्रदर्शनकारियों ने दो ट्रकों को जला दिया है.
विराट नगर में उग्र आंदोलनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को हवाई फ़ायरिंग करनी पड़ी है.
इस बीच सरकार द्वारा गठित चार मंत्रियों के समूह और गूजर समुदाय के नेताओं के बीच दूसरे दौर की बातचीत होने जा रही है.
बुधवार की रात दौसा में हुई बैठक में कोई नतीजा नहीं निकला था.
तोड़फोड़-आगजनी
राज्य के कोटा, अजमेर, करोली, टौंक, अलवर और सवाई माधोपुर शहरों सहित कई क़स्बों में बंद का असर दिख रहा है.
कोटा, धौलपुर और भरतपुर से ख़बरें हैं कि कई पुलिस थानों और सरकारी कार्यालयों में प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी है.
उधर जयपुर-अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर दो ट्रकों में आग लगा दी गई है जिसमें दो ट्रक ड्राइवर घायल हुए हैं.
विराट नगर में हिंसक हो गए प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को हवाई फ़ायर करना पड़ा है. हालांकि इसमें किसी के हताहत होने की ख़बरें नहीं हैं.
कई जगहों से प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़पों की ख़बरें हैं.
राज्य के कई शहरों में तनाव की स्थिति बनी हुई है और सुरक्षाबल स्थिति पर निगरानी रखे हुए हैं.
आरक्षण
अब तक अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल गूजरों का कहना है कि उन्हें इस वर्ग में रहकर आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है और अब उन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाना चाहिए.
सत्ता में आने से पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने इसका आश्वासन दिया था लेकिन अब तक कुछ नहीं हो सका है.
प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों की ख़बरें हैं
इस बीच गुरुवार को राज्य के खाद्यमंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने कहा है कि अनुसूचित जनजाति के लोग आरक्षण में बँटवारे के लिए तैयार नहीं हैं.
उनका कहना है कि आदिवासी विधायक इसे लेकर पहले से ही एकजुट हैं.
उल्लेखनीय है कि मीणा समुदाय अनुसूचित जनजाति में शामिल है और पिछले दशकों में इस आरक्षण का समुदाय को बहुत लाभ मिला है.
इस बीच राज्य के तीस मीणा विधायकों ने एक बैठक भी की है.
सरकार ने इस मामले में गूजरों से बात करने के लिए चार मंत्रियों की एक समिति बना दी है.
इस समिति ने बुधवार की रात गूजर नेताओं से चर्चा की थी. दूसरे दौर की बात गुरुवार की शाम फिर हो रही है.
राजनीति तेज़
गूजरों के विरोध ने अब राजनीतिक रंग लेना भी शुरु कर दिया है.
राज्य की भाजपा सरकार के पांच गूजर विधायकों ने पार्टी नेतृत्व से इस्तीफ़ा देने की अनुमति मांगी है. इनमें ग्रामीण विकास मंत्री कालूलाल गूजर भी शामिल है.
उन्होंने कहा कि मंगलवार की घटना से वो व्यथित हैं इसलिए चाहते हैं कि पार्टी उन्हें इस्तीफ़ा देने की अनुमति दे दे. भाजपा अपने विधायकों को मनाने का प्रयास कर रही है.
इस बीच, कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के नेतृत्व में दौसा जा रहे पाँच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. हालाँकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया.
भाजपा ने अपने प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर को राजस्थान भेजा है.


कौन हैं गूजर

आरक्षण की माँग को लेकर राजस्थान मे विरोध कर रहे गूजर राजस्थान तक सीमित नहीं हैं और ये पाकिस्तान तक फैले हुए हैं. भारत में इनकी आबादी जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और थोड़ी बहुत पंजाब में भी है। हिमाचल और जम्मू कश्मीर में जहां गूजरों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा दिया गया है वहीं राजस्थान में ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं.
अब ये मांग कर रहे हैं कि इन्हें राजस्थान में भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले. हालांकि राजस्थान के समाज में इनकी स्थिति जनजातियों से कहीं बेहतर है.
हज़ारों वर्ष पहले युद्ध कला में निपुण गूजर अब मुख्य रुप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। राजपूतों के समय में गूजर अच्छे योद्धा माने जाते थे और शायद इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी गूजरों की अच्छी खासी संख्या है.
इतिहास
प्राच्यकालीन इतिहास के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी का आर्मेनिया और जार्जिया) से आए और इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे.
कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं.
भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने 12 वीं सदी जिसे भारतीय इतिहास में अंधकार युग कहा जाता है, गूजर सत्ता में थे.
गूर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी.
मिहिरभोज को गूर्जर प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बिहार के पाल वंश और महाराष्ट्र के राष्ट्रकूट शासकों से हमेशा होती रहती थी.
12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरु हुआ और ये कई हिस्सों में बंट गए.
गूजर समुदाय से अलग हुए सोलंकी, प्रतिहार और तोमर जातियां प्रभावशाली हो गईं और राजपूतों के साथ मिलने लगीं जबकि कई अन्य विभाजन होकर कुछ अन्य व्यवसायों में चले गए.
तीसरे बचे गूजर कबीलों में बदलने लगे और उन्होंने खेती और पशुपालन का काम अपनाया.
ये गूजर राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे स्थानों पर फैले और पिछड़े रहे.
इतिहासकार कहते हैं कि विभिन्न राज्यों के गूजरों की शक्लो सूरत में भी फर्क दिखता है.
जहां दिल्ली के गूजर लंबे चौड़े, लंबी नाक वाले और गोरे होते हैं वहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान के गूजर लंबे लेकिन सांवले होते हैं.
राजस्थान में इनका काफी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है.
उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गूजरों की स्थिति थोड़ी अलग है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गूजर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गूजर हिंदू हैं.
मध्य प्रदेश में चंबल के जंगलों में गूजर डाकूओं के गिरोह भी हैं.
हिंदू वर्ण व्यवस्था में इन्हें क्षत्रिय वर्ग में रखा जा सकता है लेकिन जाति के आधार पर ये राजपूतों से पिछड़े माने जाते हैं.
पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी खासी संख्या है.
भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी, भारतीय फ़िल्म अभिनेता अर्जुन रामपाल, कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं.

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