Saturday 16 June 2007

'दुसमय' के मुख्य पात्र : नंदीग्राम-सिंगूर

कोलकाता : शांति प्रक्रिया के बीच पश्चिम बंगाल में पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में नए सिरे से तनाव का माहौल बन गया जब नंदीग्राम में शुक्रवार को फिर हिंसा हुई। तृणमूल कांग्रेस समर्थित कमिटी के सदस्यों ने एक राहत शिविर पर हमला किया जिसमें दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। आईजी (कानून व्यवस्था) राज कनौजिया ने बताया कि भंगरबेरा में राहत शिविर के पास ड्यूटी पर तैनात इंस्पेक्टर प्रभात सरकार और एक कॉन्स्टेबल भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी के कार्यकर्ताओं की अंधाधुंध गोलीबारी में घायल हो गए। कमिटी नंदीग्राम में स्पेशल इकनॉमिक जोन (सेज) के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रही है। यहां सरकारी एसएसकेएम अस्पताल में भर्ती सरकार को सिर में चोट आई है और उनकी हालत गंभीर बताई जाती है। इस बीच नंदीग्राम के गोकुलनगर इलाके में भी तनाव है। यह छात्रों ने स्कूल में पुलिस शिविर पर धावा बोल दिया। छात्र पिछले दो महीने से इस इलाके में पुलिस की मौजूदगी का विरोध कर रहे हैं। पूर्वी मिदनापुर के पुलिस सुपरिंटेंडेंट जी श्रीनिवास ने कहा है कि इस घटना में शामिल छात्रों के खिलाफ पुलिस उचित कार्रवाई करेगी।

नंदीग्राम पर रिपोर्ट पेश की
पश्चिम बंगाल सरकार ने कोलकाता हाई कोर्ट में शुक्रवार को नंदीग्राम पर स्थिति रिपोर्ट पेश की। सरकार ने मुख्य न्यायाधीश एस. एस.निजर की अध्यक्षता वाली 2 सदस्यीय बेंच के सामने अपनी रिपोर्ट पेश की। बेंच ने प्रशासन से सूचना देने को कहा था कि उसने नंदीग्राम में शांति और आर्थिक गतिविधियां बहाल करने के लिए क्या किया है। नंदीग्राम में सेज स्थापित करने के खिलाफ आंदोलन में पुलिस ने गोलीबारी की थी, जिसमें 14 मारे गए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि नंदीग्राम में स्थिति में सुधार हुआ है और आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट रही हैं। साथ ही हिंसक घटनाओं के बाद घर छोडकर चले गए लोगों को वापस लाने की कोशिशें चल रही हैं।

सिंगूर में भूमि लौटाना संभव नहीं: बुद्धदेव
पश्चिम बंगाल के सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस की मांग पर टाटा मोटर्स की लखटकिया कार प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई जमीन किसानों को वापस करने से इनकार किया है। हालांकि उन्होंने कहा कि राज्य सरकार वैकल्पिक प्रस्ताव तैयार करेगी। उधर, ममता बनर्जी ने राज्य सरकार के फैसले पर कहा कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो समस्या का समाधान हो सकता है। इससे पहले राज्य कैबिनेट की कोर कमिटी की बैठक में नंदीग्राम और सिंगुर मामले की चर्चा हुई। बैठक के बाद पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर क्षिति गोस्वामी ने बताया कि टाटा प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई जमीन वापस नहीं की जाएगी। सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कोर कमिटी को बताया कि इस बाबत सीपीएम के आला नेता ज्योति बसु को भी सूचित कर दिया गया है। उद्योग मंत्री निरुपम सेन ने बसु को बताया है कि टाटा प्रोजेक्ट के लिए ली गई जमीन वापस करना मुमकिन नहीं। नंदीग्राम और सिंगुर मसले पर 4 जून को तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी और ज्योति बसु की बातचीत हुई थी। बैठक में बसु ने ममता को बताया था कि राज्य सरकार दोनों मामलों पर विचार करेगी। उस वक्त दोनों नेता ने इस मुद्दे के हल की उम्मीद जताई थी। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने दोहराया था कि अपनी जमीन चाहने वाले किसानों को जमीन वापस की जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि इस मसले पर हर दिन पार्टी का रुख नहीं बदलेगा।

नंदीग्राम में चल रही है वर्चस्व की लड़ाई

बंगाल के नंदीग्राम में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी राज्य में वाम मोर्चा शासन के 30 वर्षों के दौरान कठोर कार्रवाई की पहली घटना नहीं है लेकिन निश्चित रूप से यह ऐसी पहली घटना है जब वामपंथी सरकार ने अपने समर्थक माने जाने वाले ग़रीब किसानों के ख़िलाफ़ ऐसी नृशंस कार्रवाई का आदेश दिया है.
ग़ौरतलब है कि सरकार के भूमि सुधार और सत्ता के विकेंद्रीकरण का फ़ायदा इसी तबके को सबसे ज़्यादा मिला है.
विश्लेषक रणबीर समतदार कहते हैं, ‘‘नंदीग्राम की घटना मार्क्सवादियों के लिए घातक साबित हो सकती है. नंदीग्राम की घटना के बाद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का रवैया वर्तमान संकट के लिए ज़िम्मेदार है."
समतदार कहते हैं, ‘‘साधरणतः वामपंथी पार्टियों के कार्यकर्ता और प्रशिक्षित काडर सरकार के कार्यक्रमों को नीचे तक पहुँचाते हैं लेकिन इस बार सारी योजना अधिकारियों ने बनाई और एक सुबह ग्रामीणों को बताया कि उनकी ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है.’’
मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ख़ुद स्वीकार करते हैं कि नंदीग्राम में ज़मीन अधिग्रहण की योजना में ख़ामियाँ हैं.

बिगड़ती क़ानून व्यवस्था
मुख्यमंत्री ने हाल ही में पत्रकारों से कहा, "मैं मानता हूँ हमने ग़लती की, इसलिए अगर नंदीग्राम के लोग केमिकल हब से होने वाले फ़ायदों से सहमत नहीं हैं तो हम उन पर ये परियोजना नहीं थोपेंगे. हम इसे कहीं और स्थानांतरित कर देंगे."
लेकिन इस तरह के बयान के बाद भी मुख्यमंत्री ने नंदीग्राम में इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात क्यों किया?
भट्टाचार्य का विधानसभा में कहना था, "पुलिस वहाँ ज़मीन के अधिग्रहण के लिए नहीं बल्कि बिगड़ती क़ानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए गई थी."
विश्लेषकों का कहना है कि नंदीग्राम में स्थानीय मार्क्सवादी नेताओं के कारण ही पुलिस को गोली चलानी पड़ी. वहाँ किसानों के विरोध की वजह से जनवरी 2007 से मार्क्सवादी पार्टी के लगभग तीन हज़ार समर्थक भागने पर मजबूर हुए हैं.
माकपा सांसद लक्षमण सेठ कहते हैं, "यह नहीं चल सकता. हमे इन लोगों को घर वापस जाने लायक स्थिति बनानी होगी."
दरअसल सेठ की अगुआई वाले हल्दिया विकास प्राधिकरण ने ही इंडोनेशिया के सलीम समूह के प्रस्तावित विशेष आर्थिक क्षेत्र यानी एसईज़ेड के लिए भू-अधिग्रहण का नोटिस दिया था.

वामपंथी वर्चस्व

बंगाल में बहुत कम ही ऐसे मौक़े आए हैं जब मार्क्सवादी राजनीतिक प्रणाली पर विपक्षी दल हावी हो गए हों.
राजनीतिक मामलों के जानकार सव्यसाची बासु रॉय कहते हैं, "अगर मार्क्सवादियों को लगता है कि किसी भी इलाक़े में उनका नियंत्रण कमज़ोर पड़ रहा है तो वे पुरज़ोर विरोध शुरू करते हैं. पार्टी नेतृत्व और उनके हथियारबंद समर्थकों ने वर्ष 2001 के विधानसभा चुनावों के समय पांसकुरा, केसपुर और गारबेटा में ऐसा ही किया था."
वो कहते हैं, "नंदीग्राम में पार्टी का समर्थन अब नहीं रहा और ऐसा एक साल के भीतर ही भू-अधिग्रहण मामले के बाद हुआ है इसलिए उन्होंने पुलिस को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया."

सांस्कृतिक विरोध

नंदीग्राम की घटना के बाद पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार को अगर पिछले तीन दशकों में पहली बार झुकना पड़ा तो इसके पीछे विपक्षी दलों के अलावा सांस्कृतिक विरोध की भी मुख्य भूमिका रही.
नंदीग्राम में इंडोनेशियाई कंपनी सलीम समूह के विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के लिए ज़मीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे बेक़सूर गाँववालों पर पुलिस की गोलीबारी का सांस्कृतिक संगठनों ने जमकर विरोध किया है.
वामपंथी दल इस घटना का राजनीतिक विरोध तो झेल गए लेकिन ये चौतरफ़ा सांस्कृतिक विरोध का ही नतीजा था कि मुख्यमंत्री को घटना के 15 दिनों बाद इस मामले में अपनी गलती क़बूल करनी पड़ी.
चौतरफा विरोध के दबाव में राज्य सरकार को भू-अधिग्रहण की अधिसूचना वापस लेनी पड़ी और वहाँ प्रस्तावित एसईज़ेड परियोजना को रद्द करना पड़ा. मुख्यमंत्री ने कुछ साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों से मिल कर अपनी स्थिति साफ़ करने का भी प्रयास किया. लेकिन उसके बावज़ूद उनके समर्थन में बोलने वालों की तादाद उंगलियों पर गिनी जा सकती है. नंदीग्राम की गोलीबारी के लिए अब भी सांस्कृतिक हलकों में मुख्यमंत्री का भारी विरोध हो रहा है. इसमें वामपंथी बुद्धिजीवी सबसे आगे हैं. उनकी दलील है कि सिर्फ ग़लती मान लेने से इस ग़लती की भरपाई नहीं हो सकती.

सरकार ने इस कांड में मारे गए या घायल हुए लोगों के परिजनों को अब तक एक पैसा भी मुआवज़ा नहीं दिया है. बुद्धदेब भट्टचार्य ने भले गलती मान ली हो पर उऩकी पार्टी माकपा इसे मानने को तैयार नहीं है.माकपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों की घर वापसी सरकार और पार्टी की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है. इन लोगों ने नंदीग्राम की घटना के बाद इलाक़ा ख़ाली कर दिया था.बुद्धदेब भट्टाचार्य ने सालों पहले एक नाटक लिखा था- 'दुसमय' यानी बुरा समय. लेकिन नंदीग्राम गोलीबारी के बाद वे ख़ुद ही अपने लिखे उस नाटक के मुख्य पात्र बन गए हैं.
दिलचस्प बात यह है कि गृह, सूचना और संस्कृति मंत्रालय भी बुद्धदेब के ही ज़िम्मे हैं. सांस्कृतिक ख़ेमे के विरोध को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार के सांस्कृतिक परिसर 'नंदन' में जाना छोड़ दिया है. पहले वे नियमित तौर पर नाटक और फ़िल्में देखने शाम को वहाँ जाते थे.नंदीग्राम गोलीबारी का अगले ही दिन सांस्कृतिक स्तर पर भारी विरोध शुरू हो गया था.साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, अभिनेताओं और नाट्यकर्मियों की बड़ी ज़मात उनके खिलाफ़ हो गई है.
इन लोगों ने नंदीग्राम की तुलना जालियाँवालाबाग से करते हुए बुद्धदेब को जनरल डायर से ख़तरनाक बताया और उनके इस्तीफ़े की माँग उठाई है. राज्य के बुद्धिजीवी इस घटना के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं. वामपंथी कवियों और साहित्यकारों ने सरकार की विभिन्न अकादमियों से इस्तीफ़े दे दिए हैं और सरकारी पुरस्कार लौटा दिए हैं. अब इसके विरोध में कई नाटकों के मंचन का फ़ैसला किया गया है. उनसे जुटी रक़म का इस्तेमाल नंदीग्राम के प्रभावित लोगों के पुनर्वास में किया जाएगा.

वैकल्पिक पैकेज
माकपा के वयोवृद्ध नेता ज्योति बसु ने सिंगूर में किसानों की जमीन के एवज में उन्हें दिए जाने वाले वैकल्पिक मुआवजा पैकेज की सराहना की है। राज्य के उद्योग मंत्री निरूपम सेन द्वारा तैयार किया गया यह पैकेज सिंगूर के उन किसानों के लिए है जिनकी जमीन टाटा मोटर्स की लघु कार परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई है। बसु ने पार्टी की राज्य सचिवालय में हुई बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा देश में यह सबसे बढ़िया पैकेज है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण मामले की उच्च न्यायालय में 18 जून को होने जा रही सुनवाई के बाद सेन इस पैकेज का खुलासा करेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी को यह पैकेज अस्वीकार्य लगता है। बसु ने कहा कि इसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता। उन्होंने जानना चाहा क्या उन्हें पैकेज की जानकारी है। पश्चिम बंगाल की सरकार ने कल तृणमूल कांग्रेस की यह माँग खारिज कर दी थी कि सिंगूर के किसानों की जमीन उन्हें वापस कर दी जानी चाहिए। लेकिन राज्य सरकार ने कहा था कि वह एक वैकल्पिक पैकेज तैयार कर रही है।

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