Tuesday 24 July 2007

कल्याणकारी सरकार का जनविरोधी नजरिया ?

पहले इन खबरों को पढ लें. ये खबरें गवाह हैं कि कब कैसे आम लोगों के जनहित के मद्देनजर हमारी रहनुमा सरकारों और प्रगतिशील पार्टियों का मुखौटा बदलता है.
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२३ जुलाई २००७
ईपीएफ पर ब्याज दर 8.5 फीसदी
कर्मचारी भविष्य निधि पर 2006-07 के लिए पहले की भाँति साढ़े आठ प्रतिशत ब्याज दिया जाएगा। इस आशय का फैसला श्रममंत्री ऑस्कर फर्नांडीज की अध्यक्षता में सोमवार को हुई कर्मचारी भविष्य निधि बोर्ड की बैठक में लिया गया। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार वर्ष 2006-07 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि पर साढ़े आठ प्रतिशत ब्याज दिया जाएगा। चालू वित्त वर्ष के ब्याज दर का फैसला बोर्ड की आगामी बैठक में होगा।
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उपर जो खबर आपने पढी उसके पूर्व का आम लोगों से किया गया प्रधानमंत्री का वायदा देखिए.
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शुक्रवार, 09 दिसंबर, 2005
श्रम मंत्रालय से बात करेंगे प्रधानमंत्री
कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ़) की ब्याज दर घटाने के मामले में कर्मचारी संगठनों और विपक्षी पार्टियों के दबाव में झुकते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि वे श्रम मंत्रालय से इस बारे में बात करेंगे.
बुधवार को ईपीएफ़ बोर्ड की बैठक में वर्ष 2005-06 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि की ब्याज़ दर 9.5 प्रतिशत से घटाकर 8.5 प्रतिशत करने का फ़ैसला किया गया था.
लेकिन विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ सरकार को समर्थन दे रही वामपंथी दलों ने इस पर आपत्ति व्यक्त की थी.
शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीय श्रम सम्मेलन के उदघाटन सत्र में भाषण करते हुए कहा, "मैं इस मामले पर श्रम मंत्रालय के साथ विचार विमर्श करूँगा. मैं यह जानने की कोशिश करूँगा कि ईपीएफ़ संगठन के संसाधनों के दायरे में क्या हो सकता है."
आश्वासन
कर्मचारी संगठनों की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने कर्मचारी संगठनों की मांग पर विचार किया है और वे समझ सकते हैं कि ब्याज दर घटाने से कर्मचारी दुखी हुए हैं. बुधवार को दिल्ली में एक बैठक के बाद केंद्रीय श्रम मंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा था कि साढ़े आठ प्रतिशत का ब्याज़ देने से हमें लगभग 370 करोड़ रूपए की अतिरिक्त आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा," इस अतिरिक्त बोझ के कारण सरकारी ख़ज़ाने पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. इसके लिए अतिरिक्त संसाधन खोजने का भार श्रम मंत्रालय पर होगा". भारत में लगभग चार करोड़ लोग कर्मचारी भविष्य निधि के सदस्य हैं.
ईपीएफ़ की ब्याज़ दर को घटाने के पीछे एक प्रमुख कारण ये बताया जा रहा है कि 9.5 प्रतिशत ब्याज़ दर के समय वित्त वर्ष 2004-05 में ईपीएफ़ संगठन को 716 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था.
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अब खुद को गरीबों के रहनुमा बताने वाले वामपंथियों का तब का तेवर देखिए। यह ध्यान रहे कि मौजूदा केंद्र सरकार इन्हीं वामपंथी समर्थन के भरोसे कायम है.
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08 दिसंबर, 2005
ईपीएफ़ दर घटाने पर वामदल ख़फ़ा
ईपीएफ़ की दरों को घटाने के निर्णय पर वामदलों ने सदन के दोनों सदनों में जमकर हंगामा किया.
वामदलों ने केंद्रीय श्रम मंत्री चंद्रशेखर श्रम मंत्री के इस फ़ैसले का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि इस मामले में किसी भी घोषणा से पहले प्रधानमंत्री से चर्चा करना तय हुआ था.वामदलों ने कहा कि चर्चा के बग़ैर ईपीएफ़ के बारे में घोषणा करना ग़लत है.
वामदलों के सांसदों ने यह भी आरोप लगाया कि जब सदन का शीतकालीन सत्र चल रहा है तो ऐसे में मंत्री का सदन के बाहर कोई घोषणा करना और अपनी घोषणा के बारे में सदन में कोई स्पष्टीकरण देने के लिए उपस्थित न होना बिल्कुल ग़लत है.
सांसद और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो की सदस्य, वृंदा कारत ने कहा, "श्रममंत्री को तो यह अधिकार ही नहीं है कि वह इस तरह का वक्तव्य दें क्योंकि इसपर प्रधानमंत्री के साथ चर्चा होनी तय हुई थी."
ग़ौरतलब है कि भारत में वर्ष 2005-06 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि की ब्याज़ दर घटाने का फ़ैसला किया गया है जिसके बाद ईपीएफ़ पर 9.5 प्रतिशत की जगह 8.5 प्रतिशत ब्याज़ दिया जाएगा.
घाटा
बुधवार को दिल्ली में एक बैठक के बाद केंद्रीय श्रम मंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा था कि साढ़े आठ प्रतिशत का ब्याज़ देने से हमें लगभग 370 करोड़ रूपए की अतिरिक्त आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा," इस अतिरिक्त बोझ के कारण सरकारी ख़ज़ाने पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. इसके लिए अतिरिक्त संसाधन खोजने का भार श्रम मंत्रालय पर होगा".
भारत में लगभग चार करोड़ लोग कर्मचारी भविष्य निधि के सदस्य हैं.
ईपीएफ़ की ब्याज़ दर को घटाने के पीछे एक प्रमुख कारण ये बताया जा रहा है कि 9.5 प्रतिशत ब्याज़ दर के समय वित्त वर्ष 2004-05 में ईपीएफ़ संगठन को 716 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था.
कर्मचारी संगठन कर्मचारी भविष्य निधि की ब्याज़ दर में किसी तरह के बदलाव का विरोध कर रहे थे.
कर्मचारी संगठनों ने माँग की थी कि ब्याज़ दर में कोई बदलाव न हो और उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से दख़ल देने की माँग की थी.
पिछली बार श्रम मंत्री और सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज़ (सीटीबी) के चेयरमैन के बीच हुई बैठक में यह वादा किया गया था कि ये मामला प्रधानमंत्री के पास ले जाया जाएगा.
कई श्रम संगठनों ने एक संयुक्त पत्र लिखकर श्रम मंत्री से मांग की थी कि ब्याज़ दर कम नहीं किया जाना चाहिए.
संगठनों की माँग थी कि विशेष जमा योजना और सरकारी बॉन्ड पर ब्याज़ बढ़ा देना चाहिए.
हालाँकि इस मामले पर वित्त और निवेश उप समिति ने सिफ़ारिश की थी कि कर्मचारी भविष्य निधि पर ब्याज दर घटाकर आठ प्रतिशत कर देनी चाहिए.
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अब आप ही बताएं कि और किस पर भरोसा करे भविष्यनिधि पर आश्रित यह कर्मचारी वर्ग। प्रधानमंत्री के वायदे भी झूठे साबित हुए। देश के चार करोड़ कर्मचारियों की उम्मीद पर यह घोषणा एक तुषारापात है। एक तरफ बैंक दस फीसद तक जमा पर सूद दे रहा है तो दूसरी तरफ सरकार कर्मचारियों को फायदे दिलाने की जगह घाटे का रोना रो रही है। क्या पूंजीपतियों के इतने दबाव में यह सरकार आ गयी है कि जनकल्याण के कामों से भी उसे हाथ खींच लेना पड़ रहा है? तो फिर यह भी मान लिया जाए कि जनता के द्वारा चुनी गयी यह लोकतांत्रिक सरकार अब आम जनता की सुध लेने में सक्षम भी नहीं रह गयी?

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