Tuesday 20 November 2007

युद्धदेव के राज में गुंडो का नंदीग्राम

नंदीग्राम में जो कुछ हुआ उसे कोलकाता के अखबारी दुनिया को भी उद्देलित कर दिया है। यहां की राजनीति में भूचाल तो आया ही, बुद्धिजीवी भी सड़क पर उतर आए। जिस तरह से राजनीति में जवाबी कार्रवाई हुई उसी तरह बुद्धिजीवी भी दो खेमे में बंटकर आमने-सामने आ गए हैं। कोलकाता से छपने वाले अंग्रेजी अखबार टाइम्स आफ इंडिया, दी टेलीग्राफ, दी इंडियन एक्सप्रेस, दी स्टेट्समैन, हिंदुस्तान टाइम्स के अलावा हिंदी अखबार जनसत्ता, प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका, सन्मार्ग ने नंदीग्राम में माकपा के हिंसक चेहरे से नकाब उठाया है। बांग्ला अखबार आनंदबाजार पत्रिका, वर्तमान, प्रतिदिन ने भी माकपा की नंदीग्राम में गुंडागर्दी को उजागर किया है। इनमें से माकपा के मुखपत्र गणशक्ति ने सरकार के पक्ष को दुरुस्त रखने की कोशिश की है मगर माकपा पर हो रहे चौतरफे हमले में गणशक्ति की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गई है।
इन सबने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर स्पष्ट किया है कि किस तरह पुलिस को निष्क्रिय रहने का आदेश देकर माकपा के कैडरों को नंदीग्राम में मनमानी की छूट दे दी गई। स्थानीय लोगों के मोबाइल छीनकर और स्थानीय पीसीओ बंद कराकर पूरी संचार व्यवस्था को ठप कर दिया था माकपा कैडरों ने। नृशंश होकर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया। विस्तार से नंदीग्राम के लोगों की दुर्दशा पर टाइम्स ने कई लेख छापो हैं। धर्मनिरपेक्ष माकपा का चेहरा दी इंडियन एक्सप्रेस ने बेनकाब किया है। २० नवंबर के अंक में दी इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि नंदीग्राम में माकपा कैडरों की गुंडागर्दी के अधिकतर शिकार मुसलमान ही हुए हैं। जो माकपा के धर्मनिरपेक्ष चेहरे का एक और सच है।
वर्तमान बांग्ला अखबार को तो अपने संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बाकायदा बंद कराने की धमकी तक दे डाली। वजह वही कि वह अपनी खबरों से सरकार की गुंडागर्दी को बेखौफ होकर उजागर कर रहा है।
हिंदी अखबारों ने इतना निर्भीक होने का परिटय तो नहीं दिया मगर जनसत्ता हिंदी दैनिक में अखबार के पूर्व संपादक व वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने बुद्धदेव के उस हुंकार को बेनकाब किया है जिसमें नंदीग्राम पर कब्जा के बाद कहा गया कि- माकपा ने हिसाब बराबर कर दिया है। सभी के लेख को यहां दिया जाना संभव नहीं मगर प्रभाष जोशी के लेख को पीडीएफ फार्म में दे रहा हूं। दो दिन के अंक में दोनों दिन बाटम में प्रभाष जोशी का लेख छपा है। जनसत्ता के पूरे पेज के साथ लेख के साथ दिया है। पूरा लेख टर्न के साथ बगल में ही रखा है। आप भी अवलोकन करिए कि एक संपादक के नजरिए से नंदीग्राम के मायने क्या हैं। लेख का शीर्षक है- इनका काडर संविधान और लोकतंत्र से उपर और बड़ा है और दूसरा है- युद्धदेव के राज में गुंडो का नंदीग्राम। इसके अलावा जनसत्ता में इसी मुद्दे पर १८ नवंबर के अंक में प्रभाष जोशी का कागद कारे-गुंडई का पक्का लोकतंत्र भी- नंदीग्राम के सच का दस्तावेज ही है।



1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

असल राजनेता तुष्टीकरण उसी समुदाय का करते हैं, जिसको उन्हें बरगलाना होता है और बरगलाया उसे ही जाता है जिससे उसका वास्तविक हक़ छीनना हो. नंदीग्राम में यह बात साफ हो गई.

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