Tuesday 8 January 2008

खिचड़ी इस बार १५ को क्यों मनाएं ?



मकर संक्रांति

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना 'मकर संक्रांति' कहलाता है। इस दिन सूर्यदेव उत्तारायण होकर विशेष फलदायक हो जाते है। शास्त्रों में उत्तारायण की अवधि को देवताओं का दिन बताया गया है। इस दृष्टि से मकर-संक्रांति देवताओं का प्रभातकाल सिद्ध होती है। मकर-संक्रांति के पुण्यकाल में स्नान-दान, जप-होम आदि करने का बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस संक्रांति के पुण्यकाल में किया गया दान दाता को सौगुना होकर प्राप्त होता है।
निरयण दृक्पक्षीय पंचांग-गणित के अनुसार इस वर्ष सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी को पूरा दिन बीत जाने के बाद 14/15 जनवरी को मध्यरात्रि में 0.09 बजे होगा। अत: इस साल 14 जनवरी को सूर्य के धनु राशि में बने रहने के कारण इस दिन मकर-संक्राति का पर्व मनाना संभव नहीं है। 14 जनवरी को रात बीत जाने के बाद 15 तारीख लग जाने पर सूर्य का मकर राशि में भारतीय समयानुसार 0.09 बजे प्रवेश होगा अतएव मकर-संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को प्रात: सूर्योदय से सायं 4.09 बजे तक रहेगा।
मकर-संक्रांति के दिन गंगा-स्नान तथा गंगातट पर दान की विशेष महिमा है। तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में मकर-संक्रांति में दिन पर्व-स्नान हेतु लाखों श्रद्धालु आते है। इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी लोग किसी पवित्र नदी, सरोवर अथवा कुण्ड में स्नान करते है। उत्तर प्रदेश में मकर-संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान एवं खिचड़ी खाने की प्रथा है। इस कारण यहां यह महापर्व 'खिचड़ी' के नाम से जाना जाता है। मकर-संक्रांति को 'तिल-संक्रांति' भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें तिल से बने पदार्थो का भी दान किया जाता है। बंगाल में इस संक्रांति के दिन स्नान करके तिल का दान करने की परंपरा है। असम में इस दिन 'बिहू' त्योहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में 'पोंगल' का पर्व भी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर होता है। वहां इस दिन तिल, चावल, दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। नई फसल के अन्न से बने भोज्य पदार्थ भगवान् को अर्पण करके किसान अच्छे कृषि-उत्पादन हेतु अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। तमिल पंचांग में नया वर्ष मकर-संक्रांति से शुरू होता है।
महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियां शादी के बाद पहली मकर-संक्रांति पड़ने पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएं सुहागिनों को प्रदान करती है। राजस्थान में महिलाएं तिल के लड्डूं और घेवर के साथ रुपया रखकर वायन के रूप में उसे अपनी सास को चरणस्पर्श करके देती है। इसके अलावा किसी वस्तु-विशेष को चौदह की संख्या में संकल्प करके चौदह ब्राह्मणों को दान देने का भी रिवाज है। इस प्रकार यह संक्रांति एक विशेष त्योहार के रूप में देश के विभिन्न अंचलों में विविध प्रकार से मनाई जाती है। गुजरात-महाराष्ट्र में मकर-संक्रांति के दिन खेल-प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। पंजाब, जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति की पूर्वसंध्या को 'लोहड़ी' के नाम से बड़े उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश कर जाने पर धनु मास समाप्त हो जाता है। इससे मांगलिक कार्यो पर लगा मासव्यापी प्रतिबंध दूर हो जाता है। मकर राशि में सूर्य की स्थिति में तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी-संगम में स्नान करने तथा संगम-क्षेत्र में वास करने से 'कल्पवास' का फल प्राप्त होता है। इसी कारण मकरस्थ सूर्य में संत-महात्मा और आस्थावान लोग प्रयागराज अवश्य पहुंचते है-माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
सनातन धर्म के अनुसार जिन लोगों को स्वर्ग की कामना हो, उन्हे माघ मास में मकर राशि के सूर्य की स्थिति के समय अपने नगर अथवा ग्राम के समीप स्थिति नदी, सरोवर अथवा कुण्ड में सूर्योदय से पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए-
स्वर्गलोके चिरं वासो येषां मनसि वर्तते। यत्र क्वापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे॥
सूर्य की मकर राशिगत स्थिति में माघ की तरह पौष मास में भी स्नान-दान किया जा सकता है। वस्तुत: हमारे सभी पर्व आध्यात्मिक भावना से ओत-प्रोत है। उनसे भारतीय संस्कृति को नई दिशा और नूतन शक्ति मिलती है। जरूरत है पर्व में छुपे आध्यात्मिक संदेश को समझने की, जिसको आत्मसात किए बिना पर्व को मनाना केवल लकीर का फकीर बनना ही साबित होगा।

पहली बार 15 जनवरी को मकर राशि में सूरज

इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को होगी। सुनने में भले ही यह अजीब लगे, लेकिन वर्ष 2008 में ऐसा ही हो रहा है। पंद्रह जनवरी को हो रही मकर संक्रांति को लेकर ज्योतिषियों और लोगों में हलचल शुरू हो गई है। ज्योतिषियों का कहना है कि शास्त्रों में 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति होने का कोई उल्लेख नहीं है। यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा हुआ पर्व है। पिछली शताब्दियों में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश अलग-अलग तारीखों में होता रहा है लेकिन 19वीं-20वीं शताब्दी के बाद यह पहला मौका है जब सूर्य 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। इस बार 14 जनवरी को अर्धरात्रि बाद 12 बजकर 9 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। तब तक तारीख बदलकर 15 जनवरी हो जाएगी। मकर संक्रांति का पुण्यकाल तो 15 जनवरी को बीते सालों में कई बार आया है लेकिन 15 जनवरी को सूर्य का मकर राशि में प्रवेश पहली बार हो रहा है। इसका पुण्यकाल 15 जनवरी को शाम 4 बजकर 9 मिनट तक रहेगा। मकर संक्रांति की तारीख बदलने से इस दिन होने वाले धार्मिक आयोजन और दान-पुण्य भी 15 जनवरी को ही किए जाने चाहिए। 14 जनवरी को सूर्यास्त के एक घंटे 12 मिनट बाद यदि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करे तो पुण्य काल 15 जनवरी को आता है। ऐसा पिछले सालों में कई बार हो चुका है।
क्यों आई 15 को मकर संक्रांति : पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रति वर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है। करीब 17 सौ साल पहले 22 दिसंबर को मकर संक्रांति मानी जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति में 72 से 90 सालों में एक अंश का अंतर आता गया और मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने की तिथि उसी अनुरूप बढ़ती गई।
14 व 15 का संक्रमण काल चल रहा है : वर्ष 1927 से पहले मकर संक्रांति 13 जनवरी को हुआ करती थी। इसके बाद और बीसवीं सदी तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को आने लगी थी। अब वर्ष 2086 के बाद मकर संक्रांति पूर्ण रूप से 15 जनवरी को आने लगेगी। वर्तमान में 14 जनवरी और 15 जनवरी को मकर संक्रांति आने का संक्रमण काल चलेगा। इसमें कुछ सालों में तो 15 जनवरी को और कुछ सालों में 14 जनवरी को मकर संक्रांति रहेगी। इस सदी के अंत तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को होने लगेगी। इसके बाद 22वीं सदी में 15 जनवरी और 16 जनवरी का संक्रमण काल चलेगा।
मकर संक्रांति 15 को कब-कब : वर्ष 2008, 2012, 2020, 2024, 2040, 2047, 2048
पुण्य काल 15 को कब-कब : वर्ष 2011, 2022, 2027, 2030, 2032, 2035, 2038, 2043

मकर संक्रांति इस प्रकार रही

सन 290- 22 दिसंबर
16वीं-17वीं शताब्दी- 9 व 10 जनवरी
17वीं व 18वीं शताब्दी - 11 व 12 जनवरी
19वीं व 20वीं शताब्दी - 13 व 14 जनवरी
20वीं व 21 वीं शताब्दी - 13, 14 व 15 जनवरी
21वीं व 22वीं शताब्दी - 14, 15 व 16 जनवरी

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