Sunday 29 June 2008

पत्रकारों व गैर पत्रकारों को ३० प्रतिशत अंतरिम राहत

अखबारों व समाचार एजंसियों के पत्रकारों व गैर पत्रकारों को ३० प्रतिशत अंतरिम राहत को न्यायमूर्ति के. नारायण कुरूप की अगुवाई वाले वेजबोर्ड ने मंजूरी दे दी है। न्याय मूर्ति कुरूप की अध्यक्षता में शनिवार २८ जून को हुई बैठक यह फैसला काफी जद्दोजहद के बाद आमराय से नहीं बल्कि मतदान के जरिए हुआ। इस संस्तुति के मुताबिक मूल वेतन का ३० प्रतिशत अंतरिम राहत के तौर पर दिया जाएगा जो ८ जनवरी २००८ से लागू माना जाएगा। अब इसे केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्रालय को सौंपा जाएगा। मतदान में कर्मचारियों के प्रतिनिधियों और स्वतंत्र सदस्यों ने ३० प्रतिशत अंतरिम दिए जाने के पक्ष में मत दिया। एक प्रतिनिधि बैठक से नदारद था।

जो संस्तुति वेजबोर्ड ने दी है उससे भी ट्रेड यूनियन नेता खुश नहीं हैं। ट्रेड यूनियन नेताओं ने इसमें और वृद्धि किए जाने की मांग करते हुए ३० प्रतिशत अंतरिम दिए जाने को अपेक्षा से कम बताया है। ट्रेडयूनियन नेता एमएस यादव और सुरेश अखौरी की दलील है मंहगाई ११.४२ प्रतिशत पर पहुंच चुकी है और इससे पत्रकार व गैर पत्रकार भी परेशान हैं। अंतरिम में वृद्धि के लिए ट्रेड यूनियन कंफेडरेशन के नेता जल्द ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, केंद्रीय श्रममंत्री आस्कर फर्नांडीज और वामपंथी नेताओं से मिलेंगे। नेताओं ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय बछावत वेतन बोर्ड ने ७.५ प्रतिशत अंतरिम के मंजूरी दी थी जिसे बढ़ाकर १५ प्रतिशत किया गया था। इसी तरह मणिसाना बोर्ड ने २० प्रतिशत अंतरिम की मंजूरी दी थी जिसमें १०० रुपए अतिरिक्त जोड़ा गया। इसी आधार और बढ़ती मंहगाई के मद्देनजर अंतरिम में वृद्धि की मांग की गई है।
ट्रेड यूनियन कंफेडरेशन में इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन, आल इंडिया न्यूजपेपर इंप्लाइज फेडरेशन, नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट (आई), दी फेडरेशन आफ पीटीआई इंप्लाइज यूनियन और यूएनआई वर्कर्स यूनियन शामिल हैं।

(स्रोत-पीटीआई व हिंदू समाचार पत्र से साभार)

Saturday 28 June 2008

इसी देश के हैं अमरनाथ तीर्थयात्री



अमरनाथ तीर्थयात्रियों की व्यवस्था के लिए जमीन दिए जाने का सवाल पांच साल बाद जिन्न बनाकर कश्मीर में खड़ा कर दिया गया है। अब राजनीति ने इस मुद्दे को न सिर्फ सांप्रदायिक बल्कि घृणित व अलगाववादी बना दिया है। इसमें गलत क्या है अगर इतनी लंबी और हरसाल होने वाली यह तीर्थयात्रा के समुचित इंतजाम सरकार करना चाहती है। धर्म और जाति की कट्टरता के आगे आखिर कब झुकती रहेंगी हमारी सरकारें ? धर्म आधारित आतंकवाद वैसे भी कश्मीर को तबाह कर चुका है। अमरनाथ हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल है। सदियों से लोग बर्फानी बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने लगातार आ रहे हैं। तो फिर इतने बड़े तीर्थ स्थल के लिए बने मंदिर बोर्ड ने तीर्थयात्रियों के लिए अस्थायी झोपड़ियां व शौचालय के लिए जमान मुहैया करा दी तो कश्मीर के मुस्लिम संप्रदाय का क्या नुकसान हो गया। वह भी खाली व जंगली जमीन। दरअसल हकीकत यह है कि भारत में ही विशेष दर्जा प्राप्त कश्मार के लोग कभी नहीं चाहते कि देश के किसी हिस्से से कोई यहां आकर कोई सुविधा हासिल करे। इसी मानसिक भावनाओं को भड़काकर आतंकवादी भी कश्मीरियों को भड़काए हुए हैं। आम लोगों, बुद्धिजीवियों और अलगाववादी समूहों ने इसे 'घाटी में ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को बसाकर मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बनाने की साज़िश' का हिस्सा करार दिया है। इस ताज़ा विवाद के बाद अलगाववादी गुट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भिन्न धड़े एक हो गए हैं। दोनों ही गुटों ने ज़मीन हस्तांतरण के ख़िलाफ़ एकजुट होकर आंदोलन चलाने का फ़ैसला किया है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी ने धमकी दी है कि अगर ज़मीन हस्तांतरण के ख़िलाफ़ आंदोलन नहीं बंद किए गए तो वो कश्मीर घाटी में होने वाली ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति नहीं होने देगी। राजनीति की विसात बिछ गई है। हो सकता है कि आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए यह भी बड़ा मुद्दा भी बन जाए।


कश्मीर क्या अखंड भारत का हिस्सा नहीं है ? अगर है तो इसी देश के एक महत्वपूर्ण तीर्थ के नाम पर कश्मीर के लोगों को क्यों एतराज होना चाहिए ? क्यों कश्मीरियों को लगता है कि हिंदू तीर्थ का अगर इंतजाम कश्मीर में कर दिया गया तो उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा। क्या इसी सोच को पूरे देश में लागू किया जा सकता है ? ऐसा अगर पूरा देश सोचने लगे तो भारत की अखंडता भी खतरे में पड़ जाएगी। डरना छोड़कर गीलानी को खुद कश्मीर के लोग जवाब दें कि यह कोई हिंदुओं को बसाने की साजिश नहीं है और अगर हिंदुओँ को बसाने की बात होती तो पहले कश्मीरी पंडितों को दृढ़ता से सरकार बसाती। कश्मारी दुर्भावनाएं अगर नहीं छोड़े तो यह कस्मीर की बर्बादी का रास्ता होगा। वैसे भी बाहरी व्यापारियों व पूंजी निवेश का विरोध करके कश्मीरी अपने पांव में कुल्हाड़ी मार चुके हैं। वैश्वीकरण का कितना विरोध करेंगे। खुद पाकिस्तान वैश्वीकरण का विरोध नहीं कर रहा है। कुछ कठमुल्लों व अलगाववादियों के बहकावे में कश्मीरी अगर नहीं आएँ तो आपस की वैमनस्यता भी खत्म होगी। आपके मन में डर इन्हीं अलगाववादियों ने ही पैदा किया है। डर छोड़े और कश्मीर को फिर आबाद होने दें। अमरनाथ की जमान तो बहाना है। दरअसल इसी बहाने आपके अंदर बैठे डर को ये अलगाववादी भड़काना चाहते हैं। सभी की मौजूदगी कश्मीर को और मजबूत ही करेगी।




दरअसल कश्मीर के लोग राज्य में ज़मीन के किसी भी तरह के हस्तांतरण को लेकर बहुत ज़्यादा संवेदनशील इसलिए भी हैं क्यों कि पिछले छह दशकों के घटनाक्रम ने उनमें अपनी पहचान को लेकर असुरक्षा की भावना भर दी है। जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत में विशेष दर्जा मिला हुआ है.तकनीकी रूप से यह दर्जा बना हुआ है । लेकिन भारतीय संविधान में इस राज्य को जितनी स्वायत्तता की गारंटी की गई थी, उसमें पिछले पाँच दशकों में कमी आई है। राज्य को दी गई स्वायत्तता के नाम-मात्र रह गई है.कश्मीर के लोगों या ऐसा कहें कि बहुसंख्यक मुसलमानों को लगता है कि अपनी पहचान बचाए रखने का अकेला ज़रिया यही है कि ज़मीन पर नियंत्रण बनाया रखा जाए। मौजूदा स्थायी निवास क़ानून के तहत ग़ैर-कश्मीरियों को राज्य में ज़मीन ख़रीदने का अधिकार नहीं है।


क्या है विवाद?

ज़मीन दिए जाने पर सरकार का कहना है कि तीर्थयात्रियों के लिए अस्थाई झोपड़ियाँ और शौचालय बनाए जाने के लिए ज़मीन की ज़रूरत थी, इसलिए ये ज़मीन दी गई है। ज़मीन दिए जाने का विरोध सबसे पहले पर्यावरण के क्षेत्र से जुड़े स्थानीय कार्यकर्ताओं ने किया जिसके बाद कुछ स्थानीय नेता भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के विपक्ष में बैठी नेशनल कॉन्फ्रेंस, सत्ताधारी कांग्रेस की सहयोगी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी ज़मीन के हस्तांतरण का विरोध किया था।
पीडीपी के नेता और भारत प्रशासित कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद का कहना है कि सरकार को ज़मीन हस्तांतरित किए जाने के फ़ैसले को इस महीने के अंत तक वापस ले लेना चाहिए. वहीं अलगाववादी गुटों का कहना है कि एक साज़िश के तहत ये ज़मीन श्राइन बोर्ड को दी गई है. गीलानी ने कहा, "बोर्ड को ज़मीन देना ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में बसाने की एक साज़िश है ताकि मुस्लिम समुदाय घाटी में अल्पसंख्यक हो जाए। उन्होंने ज़मीन के हस्तांतरण के आदेश को रद्द करने की माँग की है, साथ ही उनका कहना था कि अमरनाथ मंदिर बोर्ड की ज़िम्मेदारी कश्मीरी पंडि़तों के हाथों में दे दी जाए। गीलानी ने अपने समर्थकों से कहा कि वे घाटी में हिंदुओं और अन्य अपसंख्यकों की सुरक्षा और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा का ध्यान रखें।



पांच साल बाद
अमरनाथ मंदिर जाने वाले यात्रियों की सुविधाओं का ख़्याल रखने के लिए राज्य विधानसभा ने वर्ष 2000 में एक क़ानून बनाकर अमरनाथ मंदिर बोर्ड का गठन किया था। उस समय भी पर्यावरणविदों को इस क़दम पर एतराज़ था लेकिन उन्होंने या किसी राजनीतिक संगठन ने सरकार के इस फ़ैसले का विरोध नहीं किया। लेकिन पाँच साल पहले जब भारतीय सेना के अवकाशप्राप्त उपप्रमुख जनरल एसके सिन्हा को राज्य का राज्यपाल बनाया गया तभी से बोर्ड की चर्चा नकारात्मक कारणों से होने लगी. हर साल यह तीर्थयात्रा दो सप्ताह से लेकर एक महीने के बीच पूरी हो जाती थी। लेकिन राज्यपाल होने के नाते अमरनाथ मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष जनरल सिन्हा ने इस यात्रा को पूरे दो महीने तक चलाने का फ़ैसला किया। इसको लेकर जनरल सिन्हा का तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद से टकराव भी हुआ।

आजाद पर दबाव बढ़ा
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जमीन हस्तांतरण के मुद्दे पर दबाव बढ़ गया। सहयोगी पीडीपी ने धमकी दी है कि कि अगर जमीन हस्तांतरण आदेश को 30 जून तक वापस नहीं लिया जाता तो वह सरकार से हट जाएगी। वहीं मुख्य विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेस ने इस मुद्दे पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया है। कार्यभार संभालने के एक दिन बाद राज्य के राज्यपाल एनएन वोहरा ने इस संवेदनशील मुद्दे पर आजाद उपमुख्यमंत्री और पीडीपी नेता मुजफ्फर हुसैन बेग तथा नेशनल कांफ्रेस के नेता उमर अब्दुल्ला के साथ बैठक की। राज्यपाल श्राइन बोर्ड के प्रमुख भी हैं। राज्यपाल के साथ बैठक के बाद हुसैन ने संवाददाताओं से कहा, 'अगर आदेश को 30 जून तक वापस नहीं लिया जाता पीडीपी सरकार से हट जाएगी। बहरहाल उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जमीन हस्तांतरण के मुद्दे से उत्पन्न स्थिति के समाधान के लिए मुख्यमंत्री और अन्य पक्षों के साथ इस मुद्दे पर सलाह मशविरा शुरू किया है। बेग के अनुसार उन्होंने राज्यपाल से जमीन हस्तांतरण आदेश को वापस लेने और 2000 में बोर्ड के गठन से पहले श्रद्धालुओं को उपलब्ध सुविधाएं मुहैया कराने को कहा।
नेशनल कांफ्रेस के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने राज्यपाल से भेंट कर वन भूमि हस्तांतरण आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा राज्यपाल ने हमारी मांगों पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की है। अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री की ओर से बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में भाग नहीं लेगी।

पवित्र अमरनाथ मंदिर और पौराणिक कहानियां


अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के शहर श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में १३५ किलोमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहां की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्रकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है। गुफा की परिधि अंदाजन डेढ़ सौ फुट होगी। भीतर का स्थान कमोबेश चालीस फुट में फैला है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदे जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर-दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही हिमखंड हैं।


जनश्रुतियाँ
जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गया था। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।


पहलगाम से अमरनाथ
पहलगाम जम्मू से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।
पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहां रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है।
चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से ११,१२० फुट की ऊंचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुंच कर ताजादम होते हैं। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: १३,५०० फुट व १४,५०० फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी सरिताएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहां से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन आप गुफा के नजदीक पहुंच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह आप पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौट सकते हैं। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुंच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुंचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।

बलटाल से अमरनाथ
जम्मू से बलटाल की दूरी ४०० किलोमीटर है। जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर की बसें आसानी से मिल जाती हैं। बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं।

इसी देश के हैं अमरनाथ तीर्थयात्री



अमरनाथ तीर्थयात्रियों की व्यवस्था के लिए जमीन दिए जाने का सवाल पांच साल बाद जिन्न बनाकर कश्मीर में खड़ा कर दिया गया है। अब राजनीति ने इस मुद्दे को न सिर्फ सांप्रदायिक बल्कि घृणित व अलगाववादी बना दिया है। इसमें गलत क्या है अगर इतनी लंबी और हरसाल होने वाली यह तीर्थयात्रा के समुचित इंतजाम सरकार करना चाहती है। धर्म और जाति की कट्टरता के आगे आखिर कब झुकती रहेंगी हमारी सरकारें ? धर्म आधारित आतंकवाद वैसे भी कश्मीर को तबाह कर चुका है। अमरनाथ हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल है। सदियों से लोग बर्फानी बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने लगातार आ रहे हैं। तो फिर इतने बड़े तीर्थ स्थल के लिए बने मंदिर बोर्ड ने तीर्थयात्रियों के लिए अस्थायी झोपड़ियां व शौचालय के लिए जमान मुहैया करा दी तो कश्मीर के मुस्लिम संप्रदाय का क्या नुकसान हो गया। वह भी खाली व जंगली जमीन। दरअसल हकीकत यह है कि भारत में ही विशेष दर्जा प्राप्त कश्मार के लोग कभी नहीं चाहते कि देश के किसी हिस्से से कोई यहां आकर कोई सुविधा हासिल करे। इसी मानसिक भावनाओं को भड़काकर आतंकवादी भी कश्मीरियों को भड़काए हुए हैं। आम लोगों, बुद्धिजीवियों और अलगाववादी समूहों ने इसे 'घाटी में ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को बसाकर मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बनाने की साज़िश' का हिस्सा करार दिया है। इस ताज़ा विवाद के बाद अलगाववादी गुट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भिन्न धड़े एक हो गए हैं। दोनों ही गुटों ने ज़मीन हस्तांतरण के ख़िलाफ़ एकजुट होकर आंदोलन चलाने का फ़ैसला किया है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी ने धमकी दी है कि अगर ज़मीन हस्तांतरण के ख़िलाफ़ आंदोलन नहीं बंद किए गए तो वो कश्मीर घाटी में होने वाली ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति नहीं होने देगी। राजनीति की विसात बिछ गई है। हो सकता है कि आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए यह भी बड़ा मुद्दा भी बन जाए।


कश्मीर क्या अखंड भारत का हिस्सा नहीं है ? अगर है तो इसी देश के एक महत्वपूर्ण तीर्थ के नाम पर कश्मीर के लोगों को क्यों एतराज होना चाहिए ? क्यों कश्मीरियों को लगता है कि हिंदू तीर्थ का अगर इंतजाम कश्मीर में कर दिया गया तो उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा। क्या इसी सोच को पूरे देश में लागू किया जा सकता है ? ऐसा अगर पूरा देश सोचने लगे तो भारत की अखंडता भी खतरे में पड़ जाएगी। डरना छोड़कर गीलानी को खुद कश्मीर के लोग जवाब दें कि यह कोई हिंदुओं को बसाने की साजिश नहीं है और अगर हिंदुओँ को बसाने की बात होती तो पहले कश्मीरी पंडितों को दृढ़ता से सरकार बसाती। कश्मारी दुर्भावनाएं अगर नहीं छोड़े तो यह कस्मीर की बर्बादी का रास्ता होगा। वैसे भी बाहरी व्यापारियों व पूंजी निवेश का विरोध करके कश्मीरी अपने पांव में कुल्हाड़ी मार चुके हैं। वैश्वीकरण का कितना विरोध करेंगे। खुद पाकिस्तान वैश्वीकरण का विरोध नहीं कर रहा है। कुछ कठमुल्लों व अलगाववादियों के बहकावे में कश्मीरी अगर नहीं आएँ तो आपस की वैमनस्यता भी खत्म होगी। आपके मन में डर इन्हीं अलगाववादियों ने ही पैदा किया है। डर छोड़े और कश्मीर को फिर आबाद होने दें। अमरनाथ की जमान तो बहाना है। दरअसल इसी बहाने आपके अंदर बैठे डर को ये अलगाववादी भड़काना चाहते हैं। सभी की मौजूदगी कश्मीर को और मजबूत ही करेगी।




दरअसल कश्मीर के लोग राज्य में ज़मीन के किसी भी तरह के हस्तांतरण को लेकर बहुत ज़्यादा संवेदनशील इसलिए भी हैं क्यों कि पिछले छह दशकों के घटनाक्रम ने उनमें अपनी पहचान को लेकर असुरक्षा की भावना भर दी है। जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत में विशेष दर्जा मिला हुआ है.तकनीकी रूप से यह दर्जा बना हुआ है । लेकिन भारतीय संविधान में इस राज्य को जितनी स्वायत्तता की गारंटी की गई थी, उसमें पिछले पाँच दशकों में कमी आई है। राज्य को दी गई स्वायत्तता के नाम-मात्र रह गई है.कश्मीर के लोगों या ऐसा कहें कि बहुसंख्यक मुसलमानों को लगता है कि अपनी पहचान बचाए रखने का अकेला ज़रिया यही है कि ज़मीन पर नियंत्रण बनाया रखा जाए। मौजूदा स्थायी निवास क़ानून के तहत ग़ैर-कश्मीरियों को राज्य में ज़मीन ख़रीदने का अधिकार नहीं है।


क्या है विवाद?

ज़मीन दिए जाने पर सरकार का कहना है कि तीर्थयात्रियों के लिए अस्थाई झोपड़ियाँ और शौचालय बनाए जाने के लिए ज़मीन की ज़रूरत थी, इसलिए ये ज़मीन दी गई है। ज़मीन दिए जाने का विरोध सबसे पहले पर्यावरण के क्षेत्र से जुड़े स्थानीय कार्यकर्ताओं ने किया जिसके बाद कुछ स्थानीय नेता भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के विपक्ष में बैठी नेशनल कॉन्फ्रेंस, सत्ताधारी कांग्रेस की सहयोगी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी ज़मीन के हस्तांतरण का विरोध किया था।
पीडीपी के नेता और भारत प्रशासित कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद का कहना है कि सरकार को ज़मीन हस्तांतरित किए जाने के फ़ैसले को इस महीने के अंत तक वापस ले लेना चाहिए. वहीं अलगाववादी गुटों का कहना है कि एक साज़िश के तहत ये ज़मीन श्राइन बोर्ड को दी गई है. गीलानी ने कहा, "बोर्ड को ज़मीन देना ग़ैर-कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में बसाने की एक साज़िश है ताकि मुस्लिम समुदाय घाटी में अल्पसंख्यक हो जाए। उन्होंने ज़मीन के हस्तांतरण के आदेश को रद्द करने की माँग की है, साथ ही उनका कहना था कि अमरनाथ मंदिर बोर्ड की ज़िम्मेदारी कश्मीरी पंडि़तों के हाथों में दे दी जाए। गीलानी ने अपने समर्थकों से कहा कि वे घाटी में हिंदुओं और अन्य अपसंख्यकों की सुरक्षा और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा का ध्यान रखें।



पांच साल बाद
अमरनाथ मंदिर जाने वाले यात्रियों की सुविधाओं का ख़्याल रखने के लिए राज्य विधानसभा ने वर्ष 2000 में एक क़ानून बनाकर अमरनाथ मंदिर बोर्ड का गठन किया था। उस समय भी पर्यावरणविदों को इस क़दम पर एतराज़ था लेकिन उन्होंने या किसी राजनीतिक संगठन ने सरकार के इस फ़ैसले का विरोध नहीं किया। लेकिन पाँच साल पहले जब भारतीय सेना के अवकाशप्राप्त उपप्रमुख जनरल एसके सिन्हा को राज्य का राज्यपाल बनाया गया तभी से बोर्ड की चर्चा नकारात्मक कारणों से होने लगी. हर साल यह तीर्थयात्रा दो सप्ताह से लेकर एक महीने के बीच पूरी हो जाती थी। लेकिन राज्यपाल होने के नाते अमरनाथ मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष जनरल सिन्हा ने इस यात्रा को पूरे दो महीने तक चलाने का फ़ैसला किया। इसको लेकर जनरल सिन्हा का तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद से टकराव भी हुआ।

आजाद पर दबाव बढ़ा
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जमीन हस्तांतरण के मुद्दे पर दबाव बढ़ गया। सहयोगी पीडीपी ने धमकी दी है कि कि अगर जमीन हस्तांतरण आदेश को 30 जून तक वापस नहीं लिया जाता तो वह सरकार से हट जाएगी। वहीं मुख्य विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेस ने इस मुद्दे पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया है। कार्यभार संभालने के एक दिन बाद राज्य के राज्यपाल एनएन वोहरा ने इस संवेदनशील मुद्दे पर आजाद उपमुख्यमंत्री और पीडीपी नेता मुजफ्फर हुसैन बेग तथा नेशनल कांफ्रेस के नेता उमर अब्दुल्ला के साथ बैठक की। राज्यपाल श्राइन बोर्ड के प्रमुख भी हैं। राज्यपाल के साथ बैठक के बाद हुसैन ने संवाददाताओं से कहा, 'अगर आदेश को 30 जून तक वापस नहीं लिया जाता पीडीपी सरकार से हट जाएगी। बहरहाल उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जमीन हस्तांतरण के मुद्दे से उत्पन्न स्थिति के समाधान के लिए मुख्यमंत्री और अन्य पक्षों के साथ इस मुद्दे पर सलाह मशविरा शुरू किया है। बेग के अनुसार उन्होंने राज्यपाल से जमीन हस्तांतरण आदेश को वापस लेने और 2000 में बोर्ड के गठन से पहले श्रद्धालुओं को उपलब्ध सुविधाएं मुहैया कराने को कहा।
नेशनल कांफ्रेस के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने राज्यपाल से भेंट कर वन भूमि हस्तांतरण आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा राज्यपाल ने हमारी मांगों पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की है। अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री की ओर से बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में भाग नहीं लेगी।

पवित्र अमरनाथ मंदिर और पौराणिक कहानियां


अमरनाथ हिन्दुओ का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के शहर श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में १३५ किलोमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहां की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्रकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है। गुफा की परिधि अंदाजन डेढ़ सौ फुट होगी। भीतर का स्थान कमोबेश चालीस फुट में फैला है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदे जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर-दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही हिमखंड हैं।


जनश्रुतियाँ
जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गया था। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।


पहलगाम से अमरनाथ
पहलगाम जम्मू से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।
पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहां रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है।
चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से ११,१२० फुट की ऊंचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुंच कर ताजादम होते हैं। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: १३,५०० फुट व १४,५०० फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी सरिताएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहां से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन आप गुफा के नजदीक पहुंच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह आप पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौट सकते हैं। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुंच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुंचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।

बलटाल से अमरनाथ
जम्मू से बलटाल की दूरी ४०० किलोमीटर है। जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर की बसें आसानी से मिल जाती हैं। बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं।

Thursday 5 June 2008

चीन में रामदेव का योग केन्द्र


योग तक लोगों की पहुँच का विस्तार करते हुए जाने-माने योग गुरु बाबा रामदेव चीन में पहला योग केंद्र स्थापित करने की योजना को अंतिम रूप दे रहे हैं।
रामदेव ने बताया कि योग धर्म नहीं है। मैं सोचता हूँ कि चीन के लिए धर्म की तुलना में अध्यात्म से बेहतर दूसरा विकल्प नहीं हो सकता क्योंकि यह सबसे ऊपर है।
लग्जरी क्रूज लाइनर सुपर स्टार वर्गो पर एक भव्य योग शिविर के आयोजन के लिए दुनिया के 15 देशों से आए 950 से अधिक व्यक्तियों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे रामदेव एक साल में चीन में पतंजलि योगपीठ सेंटर की स्थापना की तैयारी कर रहे हैं। साम्यवादी देश चीन में लोगों ने योग के प्रति दिलचस्पी दिखाई है।
हरिद्वार स्थित अनुसंधान केंद्र पतंजलि योग पीठ को रामदेव एक न्यास कहते हैं, जो योग एवं औषधियों पर अनुसंधान कर रहा है। भारत और विदेश में इसकी कई शाखाएँ हैं। यह पहला अवसर है जब यह केंद्र चीन में अपनी शाखा खोलेगा।
रामदेव ने कहा कि हम चीन में कुछ काम कर भी रहे हैं, लेकिन अब तक वहाँ योग का औपचारिक केंद्र नहीं है। चीनी नागरिक परिश्रमी होते हैं और ऊर्जावान जीवनशैली के दौरान तनाव दूर करने के लिए उन्हें अलग-अलग विधियों की तलाश रहती है।
रामदेव ने कहा कि उनका मिशन योग को दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति तक ले जाना है। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि दुनिया का हर व्यक्ति योग से परिचित हो। मुझे लगता है कि इस काम में 20 से 25 साल लग जाएँगे। मैं योग को दुनिया के अंतिम आदमी तक पहुँचाना चाहता हूँ।
बाबा अफ्रीका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका में योग के कई शिविर और कार्यशालाओं का आयोजन कर चुके हैं। अब वह श्वास लेने तथा व्यायाम की प्राचीन कला को भारत से बाहर लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयासरत हैं।
अपने तरह के पहले विशेष 'योग ऑन सी' शिविर के एक सप्ताह के सत्र में रामदेव ने कहा कि उन्होंने मध्यम एवं उच्च मध्यम वर्ग के लोगों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो अपनी ज्यादातर छुट्टियाँ तरोताजा होने और थोड़े बहुत मनोरंजन में बिताते हैं।
सुपर स्टार वर्गो पर एक सप्ताह के क्रूज शिविर में वैदिक जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए योग के अलावा चिंतन और प्राणायाम भी सिखाया जा रहा है। सुपर स्टार वर्गो 31 मई को हांगकांग के तट से रवाना हुआ है।
अनुयायियों के बीच स्वामी कहलाने वाले रामदेव ने बताया योग तो योग है चाहे इसे समुद्र में किया जाए या जमीन पर या आसमान पर। यह विशेष शिविर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि समुद्र की लहरों पर ऊपर नीचे होता जहाज मानव जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव की याद दिलाता है।
उन्होंने कहा कि शिविर का उद्देश्य लोगों को जीवन का मतलब समझाना और यह बताना है कि तीव्र संगीत और नृत्य का मतलब ही मनोरंजन नहीं होता। उन्होंने कहा आत्मावलोकन से सीखना चाहिए और जीवन पर पकड़ कमजोर नहीं पड़नी चाहिए। क्रूजलाइनर चीन के सान्या सिटी और जियामेन तथा वियतनाम के हालोंग-बे में भी रुकेगा।

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