Monday 19 October 2009

समुद्र में विलीन हो जाएंगे कई देश !

फिजी के एक वैज्ञानिक ने चेतावनी दी है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर से प्रशांत क्षेत्र के कई द्वीपों के जलमग्न होने का खतरा पैदा हो गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि कोपेनहेगन में होने जा रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इन द्वीपों को पुनर्वास सहायता की मांग करनी चाहिए। फिजी में यूनिवर्सिटी आफ साउथ पैसिफिक में जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे प्रोफेसर पैट्रिक नून ने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि सन 2100 तक कितने द्वीपों पर आबादी सलामत रहेगी।

नून मार्शल द्वीप की राजधानी माजुरो में सोमवार को शुरू हुई पैसिफिक क्लाइमेट चेंज राउंडटेबल बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं। इस बैठक में प्रशांत क्षेत्र के चौदह देश दिसंबर में कोपेनहेगन में होने वाली बैठक के लिए अपनी रणनीति पर विचार विमर्श करेंगे। नून ने कहा कि 2007 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की ओर से पेश की गई तस्वीर के मुकाबले समुद्र का जलस्तर बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। इस सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में तीन फुट से ज्यादा की बढ़ोतरी होगी। नून ने कहा कि निचले स्तर पर बसे मार्शल आयलैंड, किरिबाती और तुवालू जैसे द्वीपीय देश नक्शे से गायब हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती नीति निर्धारकों को यह समझाने की है कि आज प्रशांत क्षेत्र के लोगों की पूरी जीवन शैली में व्यापक बदलाव की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इस बहस में पुनर्वास का मुद्दा सबसे पेचीदा है। लोगों को यह समझाना मुश्किल है कि जहां वे सदियों से रहते आए हैं वहां रहना अब व्यावहारिक विकल्प नहीं रह गया है (एजंसियां)।

Thursday 15 October 2009

अनाज कम पड़ जाएगा, लोग भूखे रह जाएंगे ?

 भारत एक विषम संकट में फंस सकता है अगर खेती की जमीन को उद्योग धंधों को खड़ा करने की मुहिम में अंधाधुंध इस्तेमाल में परहेज नहीं बरता गया। अभी कहा जा रहा है कि उद्योग धंधो के बिना पूरा विकास संभव नहीं है। इस उद्देश्य की पूर्ति में खेती की उपजाऊ जमान पर उद्योग लगाने की कोशिश हो रही है। इतना ही नहीं भविष्य के खाद्यान्न की जरूरत को दरकिनार कर बंजर पड़ी जमीनों को खेती योग्य बनाने की मुहिम भी लगभग ठंडी पड़ गई है। इसका खामियाजा यह भुगतना होगा कि आने वाले कुछ दशकों में दुनिया की जो आबादी बढ़ेगी उसके लिए पेट भर अनाज भी मयस्सर नहीं हो पाएगा। कम से कम भारत इस संकट में ज्यादा फंसता नजर आ रहा है। इसकी कई वजहें हैं। पहला यह कि खेती योग्य जमीन बढ़ाने की जगह उपजाऊ जमीन पर उद्योग लगाने की मुहिम चल रही है। दूसरा यह कि खेती और किसानों की हालत भारत में सोचनीय होती जा रही है। इसी कारण किसान अब पीढ़ी दर पीढ़ी किसान नहीं रहना चाहता। खेत मजदूरों का गांवों से भारी पैमाने पर पलायन हो रहा है। अगर खेती इतने फायदे का धंधा नही बन पाती जिससे किसान खुशहाल रह सके तो यह दशा किसा भी सरकार के लिए सोचनीय हो सकती है। मैं भी एक किसान का बेटा हूं मगर सपने में भी नहीं सोच पारहा हूं कि अच्छी तालीम पाने को बाद एपने बेटे को पुस्तैनी खेती के धंधे में लगा पाऊं। आखिर क्यों ? क्या कोई सरकार इस बात के लिए चिंतित है कि खेती को मूलभत ढांचा ध्वस्त न होने पाए। कोई ठोस प्रयास की जगह किसानों की भलाई के दिखावे भर किए जा रहे हैं जबकि किसान आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं। वह भी ऐसे समय जब संयुक्त राष्ट्रसंघ ने चेतावनी दे डाली है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में खाद्यान्न का भारी संकट पैदा हो सकता है। दुनिया भर में विश्व खाद्य दिवस मनाए जाने के इस मौके पर कम से कम भारत का हर नागरिक इन सवालों का जवाब ढूंढे कि आखिर क्यों उन्हें इस संकट में धकेल रही हैं हमारी सरकारें ? जाहिर है अनाज किसी मंत्री, उद्योगपति या उनके दलालों को कम नहीं पड़ेगा। भूख से मरेगा आम आदमी ही।  आप भी देखें इस रिपोर्ट में क्या है ?

 अगले 4 दशकों में 40 करोड़ लोग भूखे रह जाएंगे.

  संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अगर दुनिया में खेती योग्य अतिरिक्त ज़मीन का इंतजाम नहीं किया गया और खाद्यान्न की पैदावार 70 फ़ीसदी नहीं बढ़ी तो अगले 4 दशकों में 40 करोड़ लोग भूखे रह जाएंगे. रोम स्थित संयुक्त राष्ट्र खाद्यान्न और कृषि संस्था का कहना है कि दुनिया में अनाज और बाक़ी खाद्यान्न की उत्तरोत्तर कमी होती जा रही है. संस्था ने अपनी दो दिवसीय संगोष्ठी के बाद यह राय दी कि इस वक़्त दुनिया में कृषि योग्य जो ज़मीन उपलब्ध है वह विश्व की बढ़ती आबादी के लिए अनाज और खाद्यान्न पैदा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

सन् 2050 तक खाद्यान्न के उत्पादन में कम से कम 70 फ़ीसदी की वृद्धि की आवश्यकता होगी क्योंकि अनुमान है कि अगले चार दशकों में दुनिया की आबादी बढ़कर नौ अरब हो जाएगी.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया की वर्तमान कृषि योग्य ज़मीन की पैदावार अगर बढ़ाई भी जाती है तो भी 2050 तक दुनिया में कम से कम 37 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार होंगे.

संस्था का यह भी कहना है कि कृषियोग्य ज़मीन की कमी के अलावा धरती के जलवायु में हो रहे परिवर्तन और खेतिहर मज़दूरों की घटती संख्या भी खाद्यान्न की कमी के कारण होंगे. इसलिए खाद्यान्न की पर्याप्त आपूर्ति के लिए अभी से उचित क़दम उठाने की ज़रुरत है.
 
'खाद्यान्न पर ख़र्च बढ़ाना होगा'


खाद्य पदार्थों की विकासशील देशों से माँग बढ़ रही है और लागत भी बढ़ रही है संयुक्त राष्ट्र  ने चेतावनी दी है कि दुनिया के खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए विकासशील देशों को कृषि क्षेत्र में 10 गुना अधिक राशि ख़र्च करनी होगी. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के प्रमुख ज़ाक डियूफ़ ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए 20 से 30 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी. खाद्यान्न संकट के कारण दुनिया के कई देशों में गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई थी. इसको देखते हुए रोम में खाद्यान्न सुरक्षा सम्मेलन बुलाया गया है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की ओर से इस सम्मेलन में दुनिया के नेताओं से खाद्यान्न की लगातार बढ़ रही कीमतों को काबू में करने के लिए प्रभावी प्रयास करने का प्रस्ताव आना है. इस मौके पर मून व्यापारिक रोक के रूप में कीमतों पर लगाम कसने के लिए कोई उपाय पेश कर सकते हैं.

खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने और उन लोगों तक इसे पहुँचाने का इंतज़ाम नहीं किया गया तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं. भुखमरी से 10 करोड़ से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं

ऐसा माना जा रहा है कि इस खाद्यान्न संकट ने 10 करोड़ लोगों को भुखमरी की तरफ़ ढकेल दिया है.आंकड़ों के अनुसार इस साल ग़रीब देशों को खाद्यान्न आयात करने के लिए 40 प्रतिशत ज़्यादा खर्च करना पड़ा है.

खाद्य और कृषि संगठन ने दानकर्ता देशों से माँग की है कि वो विकासशील देशों की और अधिक मदद करें ताकि किसान बीज, खाद और किसानी से जुड़ी दूसरी चीज़ों को खरीद सकें. इस बैठक का एक बड़ा मुद्दा जैविक ईंधन भी होगा. पिछले कुछ सालों में मक्के का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया गया है. ऐसा माना जा रहा है कि बान की मून अमरीका से माँग कर सकते हैं कि वो जैविक ईंधन की पैदावार के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को वापस लें ताकि इसका इस्तेमाल खाद्यान्न के तौर पर किया जा सके.

बढ़ती लागत

इसके पहले संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि खाद्य पदार्थों की विकासशील देशों से माँग बढ़ रही है और उत्पादन की लागत भी बढ़ रही है.खाद्य संकट ने कई देशों में दंगे तक करा दिए हैं संयुक्त राष्ट्र संस्था खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि दुनिया भर में खाद्य पदार्थों की जो क़ीमतें बढ़ी हैं वो पिछले सभी रिकॉर्ड से कहीं ज़्यादा है और उसकी कुछ वजह ये भी थी कि ख़राब मौसम की वजह से बहुत सी फ़सलें तबाह हो गई थीं.

विश्व खाद्य संगठन की वार्षिक अनुमान रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 तक गेहूँ की क़ीमतों में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है और वनस्पति तेल उस समय तक लगभग 80 प्रतिशत महंगा हो सकता है. दुनिया भर में वर्ष 2005 और 2007 के बीच गेहूँ, मक्का और तिलहन फ़सलों के दाम लगभग दोगुने हो चुके हैं. संगठन ने हालाँकि इन चीज़ों क़ीमतों में कुछ कमी होने की संभावना जताई है लेकिन यह कमी हाल के समय में हुई महंगाई के मुक़ाबले बहुत धीमी होगी.
   
     
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भारत पर खाद्य संकट का ख़तरा?

Tuesday 13 October 2009

फिर भौंका चीन

   चीन ने अभी ३ अक्तूबर को प्रधानमंत्री के अरूणांचल दौरे पर भौंका और पिछले साल भी प्रधानमंत्री की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर विरोध जताया था। पिछले साल प्रधानमंत्री चीन से लौटने के बाद 31 जनवरी और 1 फरवरी को अरुणाचल के दौरे पर गए थे। चीन ने निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की पिछले महीने की राज्य की यात्रा का भी विरोध किया था। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'चीन की चिंताओं को दरकिनार कर भारतीय नेता के विवादित क्षेत्र के दौरे से हम बहुत असंतुष्त हैं। हम चाहते हैं कि भारतीय पक्ष चीन की गंभीर चिंताओं का समाधान करे और विवादित क्षेत्र में गड़बड़ी पैदा न करे ताकि दोनों देशों के बीच संबंध स्वस्थ तरीके से विकसित होते रहें।'
मंत्रालय की वेबसाइट पर डाले गए बयान में प्रवक्ता ने कहा है कि चीन और भारत ने भी आधिकारिक रूप से अपनी सीमा को चिह्नित करने के मसले को सुलझाया नहीं है। बायन में यह भी कहा गया है कि भारत-चीन सीमा के पूर्वी हिस्से पर चीन का रुख स्थिर और साफ है।
चीन के इस रुख के बाद भारत में चीन के राजदूत चंग यान को विदेश मंत्रालय में तलब किया गया है। वह पूर्वी एशिया मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव विजय गोखले मिले हैं। चीन के विरोध को खारिज करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और प्रधानमंत्री देश के किसी भी हिस्से में जा सकते हैं। विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने भी कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अविभाज्य हिस्सा है।

भारत का कहना है कि चीन ने गैर-कानूनी रूप से जम्मू कश्मीर के 43, 180 वर्ग किलोमीटर भाग पर कब्जा जमा रखा है। दूसरी ओर, चीन भारत पर उसके करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा जमाने का आरोप लगाता है जिसका अधिकतर हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में है।
भारत अरुणाचल को अपना अटूट अंग मानता है लेकिन चीन इसे विवादास्पद कहता है. भारत ने चीन की इस आपत्ति पर विरोध प्रकट किया है कि प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह को इस 'विवादित सीमाक्षेत्र' का दौरा नहीं करना चाहिए था. चीन की इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने मंगलवार को कहा, "अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न और अटूट हिस्सा है. अरूणाचल प्रदेश में रहने वाले लोग भारत के नागरिक हैं और वे भारतीय लोकतंत्र की मुख्य धारा में शामिल रहने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं. चीन सरकार भी भारत के इस स्पष्ट रुख़ से भली-भाँति परिचित है."

चीन ने भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर यह कहते हुए 'ज़ोरदार आपत्ति' जताई है कि वो एक ऐसा सीमावर्ती क्षेत्र है जिस पर विवाद चल रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता मा झाओक्सू ने सरकारी ने समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है, "भारतीय नेता ने विवादित सीमावर्ती क्षेत्र का दौरा करके एक बार फिर चीन की गंभीर चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया है और इस यात्रा पर चीन प्रबल रूप से असंतुष्ट है." प्रवक्ता ने कहा कि चीन और भारत ने अपनी सीमा रेखा का कभी भी आधिकारिक रूप से रेखांकन नहीं किया है और चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से पर चीन का रुख़ बिल्कुल स्पष्ट है.

प्रवक्ता मा झाओक्सू का कहना था, "हम माँग करते हैं कि भारत सरकार चीन की गंभीर चिंताओं पर ध्यान दे और विवादित क्षेत्र में अशांति को ना भड़काए ताकि चीन और भारत संबंधों के सदभाव के साथ आगे बढ़ाने में मदद मिल सके. " भारतीय मीडिया संगठनों में छपी ख़बरों में कहा गया है कि प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने मंगलवार को अरूणाचल प्रदेश का दौरा किया और वहाँ एक चुनाव रैली को संबोधित किया.

भारतीय प्रवक्ता ने अपने बयान में यह भी कहा कि "भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह एक प्रचलित परंपरा है कि जब संसद या राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव होते हैं तो राजनीतिक नेता उन क्षेत्रों का दौरा करते हैं. भारत सरकार देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है."

भारतीय जनता पार्टी ने कड़ी आपत्ति जताई

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणचल प्रदेश यात्रा पर चीन की ओर जताए गए विरोध पर देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कड़ी आपत्ति जताई है। भाजपा ने सरकार से इसका कड़ा प्रतिवाद करने की मांग की। पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा- ‘प्रधानमंत्री की अरुणाचल प्रदेश यात्रा के बारे में चीन ने अपना विरोध जताने के लिए जिस शब्‍दावली का प्रयोग किया है वह बेहद आपत्तिजनक और अस्‍वीकार्य है।‘

रूड़ी ने कहा कि विदेश मंत्रालय को चाहिए कि वह भारत स्थित चीन के राजदूत को बुला कर इस बारे में कड़ा प्रतिवाद दर्ज कराए। भाजपा प्रवक्ता ने कहा- यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन की ओर से बार-बार किए जाने वाले सीमा उल्लंघनों और प्रधानमंत्री की अरुणाचल यात्राओं पर उसके विरोध का भारत की ओर से उचित जवाब नहीं दिया जाता है।'
भाजपा प्रवक्‍ता ने कहा कि हम चीनी हरकतों का जवाब देना तो दूर की बात है। सरकार इन उल्लंघनों को मीडिया की ओर से खड़ा किया गया हव्‍वा बताकर बता कर टालने की ही कोशिश करती है। उधर सरकार ने सिंह की अरुणाचल यात्रा पर चीन की आपत्ति को खारिज करते हुए आज दिए कड़े बयान में कहा कि यह प्रदेश भारत का एक अभिन्‍न अंग है। भारत ने चीन की इस टिप्‍पणी को निराशाजनक बताया है। इसके साथ ही भारत की ओर से यह भी कहा गया है कि इस तरह की टिप्‍पणियों से सीमा वार्ता की प्रक्रिया को मदद नहीं मिलेगी।

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