Saturday 21 August 2010

परमाणु दायित्व विधेयक विरोध के नाटक का पटाक्षेप कर अपने वेतन के लिए हंगामा करते रहे सांसद

  १८ अगस्त को मैंने इसी ब्लाग में लिखा था कि संसद में विरोध का नाटक हो रहा है। ( देखिए- कहीं यह विरोध का नाटक जनता को फिर निराश न कर दे ) उस नाटक का आज चरमोत्कर्ष संसद में दिखा। दरअसल आज संसद में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। एक तो सासंदों का वेतन बढ़ाया गया और दूसरी तरफ परमाणु दायित्व विधेयक में संशोधन को हरी झंडी दिखाई गई। अब परमाणु दायित्व विधेयक के कानून बन जाने की बाधा भी खत्म हो गई है।इस बार संसद को ठप कर देने वाला हंगामा सांसदों के वेतन के मुद्दे पर हुआ। मगर परमाणु दायित्व विधेयक पर विरोध एक उपबंध में एंड शब्द के हटाने तक सीमित रहा। वह विरोध भी सिर्फ वामपंथी व भाजपा सासंदों ने किया। यानी कल तक मोदी को क्लीनचिट देने का आरोप लगाकर इस बिल के मसौदे को पारित कराने में भाजपा और कांग्रेस की सौदेबाजी बताने वाले सांसद ( लालू, मुलायम वगैरह ) आज संसद में सिर्फ अपने वेतन पर ही चिंतित दिखे।
१८ अगस्त को मैंने इसी ब्लाग में विरोध का नाटक लेख में यह बात कहकर यह स्पष्ट करने की कोशिश की थी कि इन दलों ने परमाणु दायित्व विधेयक को गलत तो बताया मगर देश के सामने वह ठोस तर्क नहीं रखे जिसके कारण जनता को समझ में आए कि यह देश के लिए खतरनाक विधेयक है। फिर भी संसद को १८ अगस्त को तीव्र विरोध करके चलने नहीं दिया। आज जब उसमें संशोधन को मंजूरी दी गई तो इन सांसदों को देश और खुद के हित में से अपना हित जरूरी लगा। लगना भी चाहिए मगर जिस मुद्दे को देशहित का मानते हैं उस मुद्दे पर संसद और देश की जनता को गुमराह क्यों किया ? कायदे से आज जब संशोधन विधेयक को मंजूरी दी जा रही थी तब परमाणु दायित्व विधेयक का विरोध कर रहे दलों को फिर सदन नहीं चलने देना चाहिए था या फिर सदन से उठकर चले जाना चाहिए था। सरकार को यह जताना जरूरी था कि- जब आप विपक्ष की बात नहीं सुनेंगे तो हम सदन में बैठकर क्या करेंगे ? वैसे भी इन सांसदों ने और भी दूसरी नौटंकी की। समानांतर सरकार का स्वांग रचा। जब ऐसा कर रहे थे तब पत्रकारों को सदन से हटा दिया ।यानी जनप्रतिनिधि होने का दायित्व तो निभाया नहीं उल्टे जनता को गुमराह किया ? अब इनकी मंशा पर कौन सवाल उठाएगा। एक उदाहरण के तौर पर लें तो पत्रकारों के वेतन के लिए गठित वेतन आयोग तो वेतन में किसी सुधार की सिफारिश देने में वर्षों लगा देता है और उसको लागू होने तक इन सिफारिशों के कोई मायने नहीं रह जाते। यहां बिना किसा आयोग के सांसदों ने महज दो दिन में अपनी तनख्वाह बढ़वा ली। मीडिया का तो जानबूझकर उदाहरण दिया क्यों कि वेतन संस्तुति का यह भी एक मामला है। अगर वेतन का ही मामला संसद में मुद्दा बनता था तो सांसदों को अपने साथ उदाहरण में मीडिया समेत तमाम वेतनमानों की लटकी संस्तुतियों का मामला भी उठाना चाहिए था।

सासंदजी अगर वेतन की गुहार लगाकर आप जनसेवक जनप्रतिनिधि कहला सकते हैं तो देश के बाकी वेतनभोगी क्यों नहीं ? जरूरतें बड़ी हों या छोटी, जरूरतें तो सभी को बेहाल कर रही हैं। क्या इस मुद्दे पर बाकी लोगों के लिए आप जनप्रतिनिधि नहीं हैं ? आपके संसद में कुछ भी कहने या करने की तार्किकता की कसौटी जो भी हो मगर सिर्फ स्वकेंद्रित तो नहीं ही होनी चाहिए।अगर इस वेतनमान को अमेरिकी सांसदों के वेतन की तुलना में नहीं के बराबर मानते हैं तो मीडिया समेत बाकी के बारे में भी तो सोचिए। बहरहाल कैबिनेट ने आप सांसदों की सैलरी में बढ़ोतरी को भी मंजूरी दे दी है। यह 300% की बढ़ोतरी हुई है। यानी सांसदों का वेतन 16 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया है फिर भी मांग है कि इसे 80 हजार किया जाए। अब आप ही अपने तार्किक विरोध को कितना तार्किक मान सकते हां जबकि आज ही कैबिनेट ने उस न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल को भी अपनी मंजूरी दे दी । जिसको आप बेहद खतरनाक बता रहे थे। बीजेपी की आपत्ति पर न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल में कुछ संशोधन किया गया। कैबिनेट ने शुक्रवार को विवादास्पद परमाणु दायित्व विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी जिसमें विपक्षी दलों की चिंताओं को दूर करने वाले प्रावधानों को शामिल करने का प्रयास किया गया है। इससे अब संसद के मौजूदा सत्र में ही इस विधेयक के पारित हो जाने का रास्ता साफ हो गया है।


एंड शब्द का टोटका

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में दो उपबंधों को जोड़ने के लिए अंतिम समय में इस्तेमाल एंड शब्द को वाम दलों और भाजपा की आपत्ति के बाद निकाल दिया गया है। विधेयक पर आम सहमति निर्मित करने की संभावनाओं को तब झटका लगा जब वाम दलों ने 'एंड' का जिक्र होने के मुद्दे पर सरकार की आलोचना की। वाम दलों का दावा है कि दो उपबंधों के बीच शब्द एंड का जिक्र होने से हादसा होने की स्थिति में परमाणु उपकरण के विदेशी आपूर्तिकर्ताओं का दायित्व कुछ कम हो जाता है। भाजपा ने भी वाम दलों की ही तरह यह मुद्दा सरकार के समक्ष उठाया। विपक्षी दलों को आशंका थी कि इस शब्द के इस्तेमाल से परमाणु उपकरण के विदेशी आपूर्तिकर्ताओं का दायित्व कुछ कम हो जाएगा।


बढ़ी सैलरी से नाखुश सांसदों का हंगामा.और ज्यादा वेतन की मांग

सांसदों की वेतन वृद्धि के मुद्दे पर जब सदन में "सांसदों का अपमान बंद करो" और "संसदीय समिति की रिपोर्ट को लागू करो" जैसे नारे गूंजने लगे तो स्पीकर मीरा कुमार को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. समाजवादी पार्टी, बीएसपी, जेडी (यू), शिवसेना और अकाली दल के सदस्यों ने संसद में हंगामा किया। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव समेत कई सदस्यों ने इस पर संसद में जमकर हंगामा किया। इससे लोकसभा की कार्यवाही दोपहर तक स्थगित करनी पड़ी। इसके बाद लालू - मुलायम दोबारा सैलरी में बढ़ोतरी को लेकर संसद में धरने पर बैठ गए।

हंगामे के कारण पहली बार संसद को दोपहर तक के लिए स्थगित किया गया. प्रश्नकाल के दौरान सासंद अपनी सीटों से उठ कर कहने लगे कि सरकार ने सांसदों का अपमान किया है क्योंकि संसदीय समिति की रिपोर्ट में उनके वेतन को बढ़ाकर 80.001 रुपये प्रति महीने करने की सिफारिश है। यानी सरकारी अधिकारियों को मिलने वाले वेतन से एक रुपया ज्यादा. सांसद चाहते हैं कि सरकार इस रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर ही उनका वेतन बढ़ाए। इससे पहले शुक्रवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस विधेयक को पारित कर दिया, जिसमें सांसदों के मूल भत्ते को 16 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये करने का प्रावधान है।

कई सरकारी अफसरों के वेतन के मुकाबले सांसदों को मिलने वाले 16 हजार रुपये काफी कम हैं। इससे भारत के विभिन्न राजकीय अंगों, मसलन पुलिस सेवा में वेतन की संरचना के सिलसिले में कई बुनियादी सवाल उभरते हैं। यह भी कि वेतन संरचना के साथ भ्रष्टाचार का क्या संबंध है. दूसरी ओर, एकबारगी 300 फीसदी की वृद्धि की आलोचना भी बेमानी नहीं है। कई हलकों में यह भी पूछा जा रहा है कि अन्य क्षेत्रों की तरह क्या सांसदों के भत्ते में भी नियमित वृद्धि नहीं हो सकती है।

   इस वृद्धि के लिए सरकार को 1 अरब 42 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे. बहरहाल, महंगाई भत्ता बढ़ाने और उनके लिए प्रति वर्ष मुफ़्त हवाई उड़ानों की संख्या 35 से बढ़ाकर 50 करने की मांग को ठुकरा दिया गया है। सांसदों के भत्ते के सवाल पर बने पैनल ने सांसदों के कार्यालय संबंधी खर्चों के लिए भत्ते को 14 हजार रुपये से बढ़ाकर 44 हजार करने का सुझाव दिया था। सरकार ने फिलहाल इसे 20 हजार करने का निर्णय लिया है। मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों ने इस विधेयक पर आपत्ति जताई थी। लोकसभा में राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी सहित विपक्ष के कुछ सदस्यों ने काफ़ी शोरगुल किया था। सिर्फ़ वामपंथी दल सांसदों के भत्ते में वृद्धि का विरोध कर रहे हैं।

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